NOI कानपुर। आईआईटी कानपुर ने देश की पहली हाइपर वेलोसिटी एक्सपेंशन टनल टेस्ट सुविधा का विकास कर सफल परीक्षण किया है। इस तकनीकी सुविधा से हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइलों को सटीक निशाना लगाने के लिए तैयार किया जा सकेगा। 
गगनयान, आरएलवी के साथ ही इसरो और डीआरडीओ के विभिन्न अनुसंधान और परियोजनाओं में इसका उपयोग किया जाएगा। यह सुविधा अभी दुनिया के कुछ देशों के पास ही है।आईआईटी कानपुर में स्थापित 24 मीटर लंबी टनल को जिगरथंडा (एस-2) कहा गया है। 
गगनयान, आरएलवी के साथ ही इसरो और डीआरडीओ के विभिन्न अनुसंधान और परियोजनाओं में इसका उपयोग किया जाएगा। यह सुविधा अभी दुनिया के कुछ देशों के पास ही है।आईआईटी कानपुर में स्थापित 24 मीटर लंबी टनल को जिगरथंडा (एस-2) कहा गया है। 

आईआईटी निदेशक प्रो. एस गणेश ने बताया कि संस्थान के एयरोस्पेस इंजीनिय¨रग विभाग के हाइपरसोनिक एक्सपेरिमेंटल एयरोडायनामिक्स लैब में स्थापित किया गया है। वैमानिकी अनुसंधान और विकास बोर्ड (एआरडीबी), विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) और आईआईटी की मदद से तीन साल के दौरान स्वदेशी डिजाइन को तैयार किया गया है। यह भारत की पहली हाइपर वेलोसिटी एक्सपेंशन टनल सुविधा है, जिसे संस्थान के एसोसिएट प्रोफेसर मो. इब्राहिम सुगरनो और उनकी टीम ने तैयार किया है। 

आईआईटी के एयरोस्पेस इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख प्रो. जीएम कामथ ने बताया कि इस परीक्षण सुविधा से भविष्य में हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल या राकेट लांचर व्हीकल को अधिक गति अवस्था में सटीक परिणाम देने के लिए तैयार किया जाना आसान होगा। यह एक ऐसी उपलब्धि है, जो हाइपर वेलोसिटी अनुसंधान के लिए नए मानक तैयार करने वाली है। भविष्य में अंतरिक्ष और रक्षा क्षेत्र में भारत की क्षमता का तीव्र विकास हो सकेगा। 

परीक्षण सुरंग में वायुमंडल जैसी स्थितियां

प्रो. सुगरनो के मुताबिक, जिगरथंडा यानी एस-2 का निर्माण बेहद चुनौतीपूर्ण रहा है। परीक्षण के लिए तैयार सुरंग में 'फ्री पिस्टन ड्राइवर' प्रणाली को इस तरह तैयार किया गया है कि 20-35 एटीएम के वायुमंडल उच्च दबाव पर 150-200 मीटर प्रति सेकंड की गति से फायर करके उसे पूर्ण विराम अवस्था में बिना किसी गतिरोध के पहुंचाया जाता है। 

वायुमंडल में हाइपरसोनिक क्रूज मिसाइल या गगनयान को इस स्थिति से गुजरना पड़ता है इसलिए परीक्षण सुरंग में वैसी ही स्थितियां बनाई गई हैं। परीक्षण सुविधा की मदद से राकेट लांचर वाहनों के वायुमंडलीय में प्रवेश, क्षुद्रग्रह प्रवेश, स्क्रैमजेट उड़ानों और बैलिस्टिक मिसाइलों के दौरान आने वाली हाइपरसोनिक स्थितियों का अध्ययन किया जा सकेगा। 

इससे नए निष्कर्षों पर पहुंचना संभव होगा। सुरंग में 3-10 किमी प्रति सेकेंड के बीच उड़ान गति प्राप्त की जा सकती है। कोई विमान या मिसाइल किस तरह से हाइपरसोनिक गति से व्यवहार करता है, उसकी कौन सी डिजाइन किस तरह की प्रतिक्रिया करती है। इसका परीक्षण सुरंग में किया जाएगा।


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